Itihas Ke Jharokhe me Mandro Mera Gaanw

350.00

किसी समाज का अतीत अमोल धरोहर होती है, और अपने प्रादुर्भाव का ज्ञान गौरव की अनुभूति कराती है। लेखक अपनी पुस्तक “इतिहास के झरोखे में, मंडरो, मेरा गाँव में अपने पैतृक गाँव, मंडरो, के इतिहास का वर्णन किया है। उन्होने अपने पुरखों के इस स्थान में । आकर बसने से लेकर अद्यतन स्थिति के परिदृश्य का एक सटीक शब्दचित्र प्रस्तुत किया है। अपने पूर्वजों पुरखों की धर्मपरायणता, उनकी कर्तव्यनिष्ठा, अदम्य साहस, शारीरिक सामर्थ्य और उद्दात्त मानसिक अवस्था का चित्रण लेखक की अप्रतिम लेखन शैली को प्रतिबिम्बित करता है। भाषा का अविरल अबाध और सुगम प्रवाह परिस्थितियों, मनोभावों और घटनाओं को पाठकों के मन-मस्तिक में चलचित्र की तरह अमिट छाप छोड़ता है। यह पुस्तक गत मध्यकालीन (मुगलकालीन) भारत की शासक शासित परिदृश्य को भी इंगित करती है जो वर्तमान पीढ़ी एवं आने वाली संततियों के लिये एक सीख, आँखें खोलने वाली और एक धरोहर होगी।

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