Zid Nahi To Zindagi Nahi
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एक बीज जो ज़मीन की परत को हटाकर अंकुरण की प्राकृतिक प्रक्रिया से जब गुजरता है तभी से वह जीवन के धरातलीय संघर्ष से जूझना आरम्भ कर देता है। कभी धूप, धूल, एवं आंधी के प्रभाव से लड़ता है तो कभी उर्वरक एवं जल के अभाव में पलता है फिर भी निज जीवन का विकास जिंदगी जीने की ज़िद के आधार पर करते हुए एक दिन फलदायी वृक्ष के रूप में अच्छादित होकर सुख समृद्धि प्रदान करता है। मैं इस संदर्भ को इस लिए भी समझ पा रही हूँ क्योंकि मुझे नवीन मानवीय कोपलों को शैक्षिक परिवेश में पल्लवित एवं प्रफुल्लित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है… मैं एक शिक्षिका हूँ। कोमल मन के बालकों को गढ़ने एवं उनके जीवन निर्माण की प्रक्रिया में मैंने महसूस किया है कि ज़िद नहीं… तो ज़िंदगी नहीं…। जीवन में कुछ विशेष करने के लिए भूतकाल एवं अवशेष के जाल में न उलझकर उनसे सीखते हुए वर्तमान को सुदृढ़ करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। परिस्थितियों की चुनौतियों से तभी पार पाया जा सकता है जब दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ सकारात्मकता का प्रवाह अंतस्तल में हो। वास्तव में यही “ज़िद नहीं तो… ज़िंदगी नहीं…” का मूलाधार है और इसकी सीख एवं प्रेरणा मुझे मेरे परम पूज्य दादा जी श्री ज्वाला तिवारी से पुण्य फल के रूप में प्राप्त हुई…। इसलिए मैं अपनी यह काव्यकृति उन्हीं को सादर समर्पित करती हूँ।
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