, ,

Marghat

339.00

“मरघट” एक आध्यात्मिक और दर्शनपरक रचना है, एक ऐसी रचना जो जीवन और मृत्यु के बीच छिपे गहरे रहस्यों को उजागर करती है। यह कहानी है एक साधु की – एक ऐसे व्यक्ति की जिसने सांसारिक प्रेम, वेदना और मोह से निराश होकर आत्म -खोज की यात्रा शुरु की।

प्रेम में असफल होकर वह व्यक्ति क्रोध में सब सब छोड़ कर चला जाता है। उसकी वेदना उसे संसार की भीड़ से दूर, हिमालय की ऊँचाइयों की ओर खींच ले जाती है। वह ठंडी बहती गंगा के मध्य में एक चट्टान पर जा कर बैठ जाता है और फिर लगातार वह सात दिन तक उसी चट्टान पर सोया रहता है। निद्रा से उठने के बाद वह एक घने वन में जाता है, जहाँ वह एक स्त्री “पार्वती” से। मिलता है ।
फिर उसका सफर खत्म होता है वहाँ, जहाँ बर्फ से ढकी पहाड़ियों, एकांत गुफाओं और सन्नाटे से भरे जंगलों के बीच वह उस मरघट को खोजता है -जहाँ उसे एक साधु “वित्रांत” गीत गाते हुए मिलते है। ओर उसके बाद वह व्यक्ति मरघट में बैठ कर जीवन का सत्य देखता है।

इस किताब के गीत और शब्द आपकी आत्मा के लिए है।
आओ शून्य में गहरे उतरे……

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Marghat”

Your email address will not be published. Required fields are marked *